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ਵਿੱਦਿਆ ਵਿਚਾਰੀ ਤਾਂ ਪਰ-ਉਪਕਾਰੀ।
ਨਕਲ ਕਰਨਾ ਪਾਪ ਹੈ।
ਵਿੱਦਿਆ ਮਨੁੱਖ ਦਾ ਤੀਸਰਾ ਨੇਤਰ ਹੈ।
ਨਕਲ ਆਤਮ-ਹੱਤਿਆ ਹੁੰਦੀ ਹੈ।
ਚਰਿੱਤਰ ਜੀਵਨ ਦੀ ਸ਼ਾਨ ਹੁੰਦੀ ਹੈ।
ਰੱਬ ਦੇ ਸਤਿਕਾਰ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸਮੇਂ ਦਾ ਸਤਿਕਾਰ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ।
ਬੱਚਿਓ ਮਿਹਨਤ ਕਰਦੇ ਜਾਵੋ, ਮੰਜ਼ਿਲ ਵੱਲ ਪੱਬ ਧਰਦੇ ਜਾਵੋ।
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    रोज 34 जीबी डाटा प्रोसेसिंग दिमाग को कर रही है “जाम”

    आज का मानव “ई-मानव” बन चुका है. हम प्रतिदिन हमारी सुबह हमारे मोबाइल के साथ शुरू करते हैं जो जब रात को सोने जाते हैं तो जो एक गैजेट हमारे साथ होता है वह है मोबाइल. इसके अलावा दिन भर हम कम्प्यूटर स्क्रीन के आगे दिन बिताते हैं, टीवी देखते हैं और अन्य मीडिया माध्यमों का सहारा लेते हैं.

    हमने हमारे शरीर को मशीन की तरह बना लिया है और एक नई शोध इसके खतरनाक असर की ओर इशारा करती है. संशोधकों के अनुसार आज हर दिन हम करीब 1 लाख शब्दों की प्रोसेसिंग करते हैं यानी कि कुल 23 शब्द प्रति सेकंड!

    हमारा दिमाग प्रति दिन करीब 34 जीबी डाटा की प्रोसेसिंग कर रहा है और यह प्रक्रिया दिमाग को “ओवरलोड” कर रही है. हमें चाहे पता चले या ना चले परन्तु हम हमारी आसपास की दुनिया से कट रहे हैं और हमारी सोचने और समझने की शक्ति क्षणभंगुर हो रही है, यानी कि हम गहराई से सोचने की क्षमता को खोते जा रहे हैं.

    “हाउ मच इनफोर्मेशन” के सह लेखक रोजर बोन ने द संडे टाइम्स अखबार को बताया कि “हमारी ध्यान आज क्षणभंगुर स्थिर हो गया है. हम गहराई से सोच नहीं पाते क्योंकि हमारा दिमाग पहले से ही “लोड” रहता है.”

    न्यू यार्क के मनोचिकित्सक एडवर्ड हेलोवेल के अनुसार “मानव इतिहास में मानव ने आज तक कभी भी इतनी जानकारियों की प्रोसेसिंग नहीं की थी. आज हम हमारा समय कम्यूटर, मोबाइल, ब्लैकबेरी और टीवी के आगे ही बीताते हैं और यही हमारी जिंदगी हो गई है.”

    इसका सबसे घातक असर – हमारे दिमाग का विकास रूक सकता है. उत्क्रांति के दौर में हमारा दिमाग लगातार बड़ा होता गया और विकसित भी. लेकिन आगे?

    Author : तरकश ब्यूरो
    References : http://www.tarakash.com/2/science/unbelievable-facts/304-mind-processes-34-gb-data-daily.html

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